धर्मेन्द्रपाल मानिकपुरी
संत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे. वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे. उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी. उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी. प्रति वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है. इस बार यह तिथि 5 जून को है. आज संत कबीरदास की 643 वीं जयंती है. माना जाता है कि संवत 1455 की इस पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था. भक्ति काल के उस दौर में कबीरदास जी ने अपना संपूर्ण जीवन समाज सुधार में लगा दिया था. कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं. कबीर उनके आराध्य हैं. माना जाता है कि कबीर दास जी का जन्म सन् 1398 ई के आसपास लहरतारा ताल, काशी के समक्ष हुआ था. उनके जन्म के विषय में भी अलग-अलग मत हैं।

मगहर में ली अंतिम सांसे
कबीर की दृढ़ मान्यता थी कि कर्मों के अनुसार ही गति मिलती है स्थान विशेष के कारण नहीं. अपनी इस मान्यता को सिद्ध करने के लिए अंत समय में वह मगहर चले गए क्योंकि लोगों की मान्यता थी कि काशी में मरने पर स्वर्ग और मगहर में मरने पर नरक मिलता है. मगहर में उन्होंने अंतिम सांस ली. आज भी वहां पर मजार व समाधी स्थित है. उनके लेखन में बीजक, सखी ग्रंथ, कबीर ग्रंथावली और अनुराग सागर शामिल हैं. कबीर के काम का प्रमुख हिस्सा पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव द्वारा एकत्र किया गया था, और सिख गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया था. कबीर के काम की पहचान उनके दो लाइन के दोहे हैं, जिन्हें कबीर के दोहे के नाम से जाना जाता है. कहते हैं कि उनके निधन के पश्चात जब उनके देह को जलाने अथवा दफनाने के लिए हिंदू और मुसलमानों में विवाद हुआ तो, आपसी सहमति से उनके मृत देह से चादर हटाया गया तो वहां कुछ पुष्प ही नजर आये. कहा जाता है कि उन पुष्पों को हिंदू और मुसलमानों में आपस में बांट लिया और अपने धर्मों के अनुरूप दोनों ही समुदाय ने उनका अंतिम संस्कार किया.

निर्गुण ब्रह्म को मानने वाले थे कबीर
कबीर दास निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे. वे एक ही ईश्वर को मानते थे. वे अंध विश्वास, धर्म व पूजा के नाम पर होने वाले आडंबरों के विरोधी थे. उन्होंने ब्रह्म के लिए राम, हरि आदि शब्दों का प्रयोग किया है. उनके अनुसार ब्रह्म को अन्य नामों से भी जाना जाता है. समाज को उन्होंने ज्ञान का मार्ग दिखाया जिसमें गुरु का महत्त्व सर्वोपरि है. कबीर स्वच्छंद विचारक थे. उन्होंने लोगों को समझाने के लिए अपनी कृति सबद, साखी और रमैनी में सरल और लोक भाषा का प्रयोग किया है।
बजाग में पनिका समाज के लोगो ने इस महामारी के समय मे सोसाल डिस्टेंसिनग का पालन करते हुये आज सद्गुरु कबीर साहेब की 622वीं जयंती के सुअवसर पर सद्गुरू कबीर साहेब को श्रद्धा सुमन समर्पित पुजा आरती कर । कार्यक्रम को सफलतापूर्वक बनाये । जिसमे समाज के मुखिया मौजूद रहे । आलम दास, भगवान दास ,सोहन दास मानिकपुरी ,नरेश दास, गुरुदयाल दास ,सतेन्द्र मानिकपुरी ,मोहन दास टंडिया,