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अर्जुन को किस जगह मिला था चक्रव्यूह का ज्ञान, पत्थर में उकेर दिया नक्शा

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महाभारत दो भाइयों के बीच हुये महायुद्ध का वो इतिहास जिसे आज भी कोई भूल नही पाया है क्योकि आज भी इतिहास उसी धरती को बार बार याद करता है जिसकी धरती खून से सनकर लाल हो चुकी है। इस द्वंद युद्ध ने ना जानें कितने लोगों की जानें ली। कौरवों और पांडवों के बीच चली शत्रुता की जंग में ज्यादातर पांडवों को ही, ना जानें कितने दुख झेलने पड़े। 11 साल अज्ञातवास में ही रहकर कठोर से कठोर मुसीबतों का समाना करना पड़ा था। पर क्या प जानते है कि इसी अज्ञातवास में रहकर ही और उन्होंने आगे की जंग को लड़ने की रूपरेखा तैयार की थी। जिसमें सबसे बड़ी रूप रेखा थी महाभारत में रचा गया चक्रव्यूह। जिसके बारे में शास्त्र यह भी कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान ही अर्जुन ने चक्रव्यूह का ज्ञान प्राप्त किया था, पर ये किस जगह पर हुआ था इसके बारें में शायद ही आप जानते होगें। आज हम आपको बताते है इस गहरे राज के बारें में..

हिमाचल प्रदेश का हमीरपुर जिला, जहां पर बसा है राजनौण गांव। इसी गांव में पांडव अपने अज्ञातवास का समय बीताने के लिये यहां कुछ दिनों के लिए रुके थे। उन्होंने इसी गांव में उन्होंने पानी पीने के लिए एक बाबड़ी का निर्माण किया था, जो आज भी इस जगह पर ही मौजूद है।

इसके अलावा इसी स्थान पर रहकर उन्होंने चक्रव्यूह का ज्ञान प्राप्त करके उस उसकी आकृति को किसी पत्थर पर उकेरकर क रचना तैयार की थी। जिसके कुछ अंश आज भी देखें जा सकते हैं। इस चक्रव्यूह की रचना को यदि गौर से देखा जाए तो अंदर जाने का रास्ता तो साफ नजर आता है, लेकिन बाहर निकलने का रास्ता पता नहीं चलता। पांडवों द्वारा तैयार किए गए एक खंडहरनुमा महल में आज भी चक्रव्यूह के निशान मौजूद है, इस किले को पिपलु किले के नाम से जाना जाता है।

क्या है चक्रव्यूह से जुड़ी कहानी…

चक्रव्यूह भेदने की तकनीक के बारें में सिर्फ अर्जुन ही जानते थे। और इस तकनीक को बारें में जब वो अपनी पत्नी सुभद्रा को समझा रहे थे। उस समय अभिमन्यु सुभद्रा के गर्भ में था और उनकी सारी बातों को सुन रहा था।

– अर्जुन अपनी पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह में जाने, उसके सारे व्यूह भेदने और अंत में वहां से कैसे बाहर आना है, जैसी साऱी कलाओं के बता रहे थे।

–  अर्जुन ने सुभद्रा को मकरव्यूह, कर्मव्यूह और सर्पव्यूह की जानकारी दी। यह सब कलाये जानने के बाद जब बारी बाहर निकलने की आई। तब कि उन्होंने देखा कि उनकी पत्नी सो गई है।

– सुभद्रा को सोता हुआ देख अर्जुन ने उन्हें आगे के बारें में बताना ठीक नही समझा और वहां से चले गए। इस प्रकार से गर्भ में पल रहे अभिमन्यु भी चक्रव्यूह से बाहर निकलने का रास्ता नही जान सके।

केवल अर्जुन को पता थी चक्रव्यूह भेदने की कला

पूरे महाभारत काल में चक्रव्यूह में जाने का साहस अर्जुन के बाद यदि कोई कर सकता था तो वह था केवल अभिमन्यु।

– गुरु द्रोणाचार्य ने यह कला अपने बेटे को ना सिखाकर केवल अर्जुन को ही सिखाई थी। इसके बाद अभिमन्यु ही अपने पिता की तरह चक्रव्यूह में प्रवेश करने की कला को जानता था, पर वहां से बाहर कैसे आया जाए, यह वह नहीं जानता था, जिसका लाभ शत्रुओं ने उठाया।

 

कौरवों ने किया छल

कहते हैं कि अभिमन्यु ऐसे द्वंद्व योद्धा थे जिसके सामने बड़े बड़े महायोद्धा भी टिक नही पाता था। कौरवों में भी इतनी शक्ति नही थी कि उसे पराजित कर पाते। इसीलिए कौरवों ने अभिमन्यु को पराजित करने के लिए छ्ल का सहारा लिया। गुरु द्रोण द्वारा पाण्डवों को हराने के लिए चक्रव्यूह की रचना की गई। वे जानते थे कि चक्रव्यूह को भेदने की कला केवल अर्जुन को आती है, लेकिन अर्जुन-पुत्र की क्षमता से अनजान थे गुरु द्रोण।

छः चरण भेद लिए थे अभिमन्यु ने…

युद्ध के दौरान अभिमन्यु जब चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गया। चक्रव्यूह में प्रवेश करने के बाद अभिमन्यु ने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के छः चरण भेद लिए। इसके दौरान अभिमन्यु के द्वारा दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण भी मारा गया। अपने पुत्र को मृत अवस्था में देख दुर्योधन क्रोध से भर गया।

छह चरण पार करने के बाद अभिमन्यु जैसे ही सातवें और आखिरी चरण पर पहुंचा, तो उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि सात महारथियों ने घेर कर मार दिया।

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