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एक और बाघिन की मौत जिसका किये इलाज उसकी हुई मौत

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एक और बाघिन की मौत जिसका किये इलाज उसकी हुई मौत

उमरिया 28 नवम्बर – बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में फिर एक बाघिन की मौत हुई, क्षेत्र संचालक ने प्रेस नोट जारी कर बताया मादा बाघ टी-66 खितौली एवं पनपथा बफर में पिछले 1 माह से घायल अवस्था में
देखी जा रही थी, बाघिन की हांथियों एवं कर्मचारियों द्वारा लगातार माॅनीटरिंग की जा रही थी, बाघिन गम्भीर चोटों के कारण शिकार करने में असमर्थ प्रतीत हो रही थी, स्वास्थ में सुधार परिलक्षित न होने पर दिनांक 26/11/2021 को कक्ष क्रमांक आर.एफ. 501 बीट खितौली पनपथा वन परिक्षेत्र से बाघिन को रेस्क्यू किया गया था। जिसकी अनुमानित आयु लगभग 10 वर्ष थी। बाघिन की शल्य चिकित्सा नानाजी देशमुख वेटनरी विश्व विद्यालय जबलपुर के विशेषज्ञों एवं बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के विशेषज्ञ के द्वारा दिनांक 26/11/2021 को की गई थी, तब से इलाज एवं सतत निगरानी हेतु इसे बहेरहा इंक्लोजर में रखा गया था। रेस्क्यू के समय बाघिन भूखी प्रतीत हो रही थी, डाक्टर की सलाह अनुसार बाघिन को भोजन देने का प्रयास किया गया लेकिन वह खाने में असमर्थ रही, आज दिनांक 28/11/2021 को बाघिन की मृत्यु हो गई।
एन टी सी ए के प्रोटोकाॅल के अनुसार सक्षम अधिकारियों की उपस्थिती में बाघिन का शव विच्छेदन विशेषज्ञ पशु चिकित्सकों के दल द्वारा किया गया एवं शव को जला कर नष्ट किया गया।
ऐसा प्रतीत होता है कि बाघ/बाघिन को ट्रेंकुलाइज करते समय उनको कितना डोज देना चाहिए और उसके बाद उनको कितना एंटी डोज देना चाहिए इसका ख्याल नही रखा जाता है क्योंकि जितने बाघों के रेस्क्यू पार्क के रजिस्टर्ड डॉक्टर द्वारा किया गया है, जिनको ट्रेंकुलाइज किया गया है, उनमें से कोई भी नही बचा है, लगभग सभी की मौत हो गई है। यह बृहद जांच का विषय है, इसकी जांच एक्सपर्ट से करवाने योग्य है ताकि वन्य जीव सुरक्षित रह सकें।
गौरतलब है बाघिन कई माह से घायल थी तब प्रबंधन को नजर क्यों नही आया यदि लगातार पेट्रोलिंग होता है तो कहां और किस क्षेत्र में होता है, यह बड़ा सवाल है। जबकि देखने में आता है कि पेट्रोलिंग वाहन रास्तों में डीजल भी बेचते हैं, जिस पर प्रबंधन का अंकुश नही है। कहीं ऐसा तो नही है कि प्रबंधन की मिलीभगत से कागजों में पेट्रोलिंग दिखाया जाता हो और टाइगर रिजर्व को समाप्त करने की साजिश हो। दूसरी तरफ देखा जाय तो पार्क के अधिकारी अपनी मस्ती में और कार्यालयों में अधिक समय व्यतीत करते हैं जबकि उनको फील्ड में भी समय देना चाहिए ताकि निचला अमला भी सतर्क रहें। वैसे जिस बाघ की हिस्ट्री देखें तो शायद ही ऐसा कोई बाघ होगा जिसकी सही समय पर पतारसी की गई हो। पार्क प्रबंधन के पास बाघों की मौत पर एक ही जबाब रहता है कि आपसी लड़ाई में मौत हुई है, अब बड़ा सवाल यह उठता है कि जब आपसी लड़ाई होती है तो एक ही बाघ सामने क्यों आता है, दूसरा कहाँ भाग जाता है। इन सब बातों की उच्चस्तरीय जांच आवश्यक है ताकि खुलासा हो सके। उसके लिए आवश्यक होगा कि नीचे से लेकर ऊपर तक वर्षों से जमें अधिकारियों, कर्मचारियों को अन्यत्र स्थानांतरित किया जाय उसके बाद जांच की जाय। वन्य जीव प्रेमी लगातार बाघों की हो रही मौत से निराश होते जा रहे हैं। इन सब के बावजूद वन मंत्री अधिकारियों की पीठ थपथपाने से गुरेज नही कर रहे हैं।

मृत बाघिन
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