सुरेन्द्र त्रिपाठी
बांधवगढ़ में जन्माष्टमी मनाने के बदले नियम
उमरिया 29 अगस्त – लोगों के आस्था का अपना अलग – अलग तरीका होता है, कोई शहर में बने मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करता है तो कोई घर में लेकिन जहां हजारों श्रद्धालु पुरातन काल से घने जंगलों के बीच पहाड़ पर जाकर भगवान कृष्ण का जन्म उत्सव पर्व मनाते हैं। वह भी विश्व प्रसिद्ध स्थल है बांधवगढ का किला। लेकिन इस बार जिला प्रशासन और पार्क प्रबंधन लोगों की आस्थाओं पर कुठाराघात करता नजर आ रहा है जिसके चलते विश्व हिंदू परिषद ने आक्रोश व्यक्त किया है।
खूबसूरत वादियां, घास के बड़े – बड़े मैदान और चारों ओर फैली हरियाली… हम ये किसी जंगल की सैर नहीं करा रहे हैं…. बल्कि जन्माष्टमी के मौके पर एक ओर जहां पूरा देश गोविन्दाओं का करतब देखने में मशगुल रहता है वहीं हम आपको ले चलते हैं घने जंगलों के बीच मनाये जाने वाले जन्माष्टमी पर्व की झलक दिखाने… दर असल बाघों की घनी आबादी के लिये मशहूर बांधवगढ टाईगर रिजर्व के बीचो – बीच पहाण पर मौजूद है बांधवगढ का ऐतिहासिक किला। इस किले के नाम के पीछे भी पौराणिक गाथा है कहते हैं, भगवान राम ने वनवास से लौटने के बाद अपने भाई लक्षमण को ये किला तोहफे में दिया था, इसीलिये इसका नाम बांधवगढ यानि भाई का किला रखा गया है। वैसे इस किले का जिक्र पौराणिक ग्रन्थों में भी है। स्कंध पुराण और शिव संहिता में इस किले का वर्णन मिलता है। बांधवगढ की जन्माष्टमी सदियों पुरानी है पहले यह रीवा रियासत की राजधानी थी तभी से यहां जन्माष्टमी का पर्व धूम – धाम से मनाया जाता है और आज भी ईलाके के लोग उसी परंपरा का पालन कर रहे है। लेकिन इस वर्ष कोविड गाइड लाइन का बहाना लेकर जिला प्रशासन श्रद्धालुओं की संख्या को सीमित कर दिया है। जिले के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने एक बार मे 5 वाहन और 30 व्यक्तियों को कोविड गाइड लाइन का पालन करते हुए जाने की अनुमति दिया है वहीं बताये कि बाकी अनुमति पार्क प्रबंधन देगा।
बांधवगढ के किले पर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के मेले में शामिल होने के लिये दूर – दूर से लोग पैदल चल कर आते हैं। ये है बांधवगढ टाईगर रिजर्व का मेन गेट, यहां वन कर्मी लोगों की तलाशी लेकर पर्यावरण की सुरक्षा के लिये पोलीथीन को गेट के अंदर ले जाने से रोक रहे हैं। पहला पड़ाव पार करने के बाद श्रद्धालु 8 किलोमीटर पैदल चल कर पहाण के नीचे पहुंचते हैं। यहां का खूबसूरत नजारा देख कर लोगों की थकान दूर हो जाती है। लेकिन बाघ, जंगली जानवरों का डर और बाघ के दर्शन की संभावना हर घड़ी बनी रहती है। ऐसे में पहाण की आधी चढाई पार करने पर पहला पड़ाव आता है शेष शैय्या का। यहां लोग रुक कर कुंड का ठंडा पानी पीकर अपनी थकान मिटाते हैं, ताकि आगे की चढाई चढ सके। यहां भगवान विष्णू की भीमकाय लेटी हुई प्रतिमा की श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। ओर इस प्रतिमा के चरणों की ओर से एक झरना से अविरल धारा निकलकर कुंड में जमा होती रहती है। यहां आराम के बाद लोग आगे बढते हैं, काफी खतरनाक रास्तों को पार करके दुर्गम रास्तों पर चल कर मिलती है लोगों को मंजिल जिसके लिये लोग इतनी परेशानी सहते हैं। पहाड़ पर कई द्वार हैं जो पहले इस किले की सुरक्षा के लिये बनाये गये थे और आज भी ये द्वार केवल जन्माष्टमी के दिन खुलते हैं बाकी पूरे साल बंद रहते हैं। द्वार को पार करने के बाद कई देवी – देवताओं की प्रतिमा मिलती है और भगवान विष्णू के सभी अवतारों की मूर्तियां भी यहां आकर्षण का केन्द्र हैं। इसकी पूजा के बाद लोग पहुंचते हैं राम – जानकी मंदिर में जो सैकड़ो साल से आज भी अपनी गौरव – गाथा सुनाने के लिये सीना ताने खड़ी है। यहां पत्थर का एक काफी बड़ा पीढा भी है जहां बैठ कर यहां के राजा कुदरत के नजारे देखा करते थे। इसी मंदिर में जन्माष्टमी का त्योहार पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ धूम – धाम से मनाया जाता था। पहले यहां रात में लोगों को रुकने की अनुमति थी लेकिन समय के साथ – साथ नियम भी बदलते जा रहे हैं, इस वर्ष तो श्रद्धालुओं की संख्या पर भी पार्क प्रबंधन प्रतिबंध लगा दिया, वहीं अगर नहीं बदला है तो लोगों का अपने राजा के परम्परा को निभाने का तरीका और आस्था। वहीँ दूर दूर से आने वाले श्रद्धालु अब पार्क प्रबंधन की व्यवस्था से नाराज नजर आने लगे हैं, लोगों को पीने तक के पानी की व्यवस्था पार्क प्रबंधन नही करता है। पार्क के संचालक विन्सेंट रहीम ने बताया कि लोगों के पानी पीने की व्यवस्था भी रहेगी, साथ ही प्रवेश के लिए सुबह 7 बजे से 11 बजे तक ही अनुमति देंगे वह भी आधे घंटे के अंतराल में लोग जाएंगे, कुल मिलाकर 9 बैच ही अंदर जा पायेगा वह भी 30 – 30 लोग का और 5 बजे तक सबको वापस आना ही होगा, वही व्यक्ति पार्क के भीतर जा सकता है जो कोविड का टीका लगवाया होगा, जो नही लगवाया होगा उसके लिए टीकाकरण की टीम गेट पर रहेगी।
जिला प्रशासन और पार्क प्रबंधन के इस आदेश से नाराज विश्व हिंदू परिषद के जिला मंत्री पवन त्रिपाठी ने घोर नाराजगी जताते हुए कहा कि श्रद्धालुओं की भावनाओं को आहत करने का काम जिला प्रशासन और पार्क प्रबंधन न करे अभी भी समय है, अपना निर्णय बदल कर सभी को जाने की अनुमति दे, हमारी धार्मिक भावनाओं पर कुठाराघात न करे।
गौरतलब है कि पार्क खुले रहने के दिनों में प्रतिदिन लगभग 7 से 8 सौ पर्यटक और दोनो शिफ्ट मिलाकर 150 गाड़ियां पार्क के भीतर प्रतिदिन प्रवेश करती हैं, लेकिन सारे नियम श्रद्धालुओं के लिए ही लागू कर दिए गए हैं। ऐसे में लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं।