Home राज्य वर्ष में एक बार कृष्ण जन्माष्टमी पर खुलता है बांधवगढ़ किला

वर्ष में एक बार कृष्ण जन्माष्टमी पर खुलता है बांधवगढ़ किला

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उमरिया 22 अगस्त- खूबसूरत वादियां घास के बड़े-बड़े मैदान, हरियाली की चादर ओढ़े घने जंगल, इन सब के बीच मनाया जाता है जन्माष्टमी पर्व। मध्यप्रदेश के शहडोल संभाग अंतर्गत उमरिया जिला मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर स्थित है बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, बांधवगढ़ देश का गौरव है, यहाँ साल में एक बार कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर शानदार मेला लगता है । 

बाधवगढ़ पहाड़ के ऊपर किला स्थित है, जहां राम जानकी मंदिर में प्रत्येक वर्ष जन्माष्टमी के अवसर पर मेला लगता है। मेले में म0प्र0 के विभिन्न जिलो के साथ साथ उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ से श्रद्धालु नैसर्गिक छटा के साथ भगवान श्री कृष्ण के दर्शन के लिये आते है। ऐसा मानना है कि बाधवगढ का किला लगभग 2 हजार वर्ष पहले बनाया गया था जिसका नाम शिव पुराण में भी मिलता है। इस किले को रीवा के राजा विक्रमादित्य सिंह ने बनवाया था। किले में जाने के लिये मात्र एक ही रास्ता है जो बांधवगढ नेशनल पार्क के घने जंगलो से होकर गुजरता है । 

बांधवगढ किले से एक गुप्त रास्ता है जो रीवा किले तक जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि राजा गुप्त सभा, गुप्त बातें और किलों की गुप्त विशेषताओें के बारे में जानकारी रखते थे। जिसकी किसी अन्य व्यक्तियों को जानकारी नहीं होती थी। किले की दीवारें साधारण लाल
पत्थर से बनी हैं जिसकी बारिश के दौरान सुदंरता और अधिक बढ जाती है।
जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव म0प्र0 के साथ साथ बाधवगढ किले में भी पारंपरिक तरीके से उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह किला केवल वर्ष में एक बार जन्माष्टमी के अवसर पर भक्तो के लिये खोला जाता है।
दरअसल बाघों की घनी आबादी के लिए मशहूर मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व के बीचो-बीच पहाड़ पर मौजूद है बांधवगढ़ का ऐतिहासिक किला । इस किले के नाम के पीछे भी पौराणिक गाथा है।

कहते हैं भगवान राम ने वनवास से लौटने के बाद अपने भाई लक्षमण को ये किला उपहार में दिया था इसी लिए इसका नाम बांधवगढ़ यानी भाई का किला रखा गया है। वैसे इस किले का जिक्र पौराणिक ग्रंथों में भी है, स्कंध पुराण और शिव संहिता में इस किले का वर्णन मिलता है । बांधवगढ़ की जन्माष्टमी सदियों पुरानी है,पहले ये रीवा रियासत की राजधानी थी तभी से यह 
बांधवगढ़ स्थित किले मे राम जानकी मंदिर मे सर्वप्रथम रीवा रियासत के वंशज व महाराजा मार्तण्ड सिंह जू देव के पोते दिव्यराज सिंह जी द्वारा पूजा अर्चना की गई। इस अवसर पर उनके साथ कई अन्य सदस्य भी मौजूद रहे।
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