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भाजपा जिला अध्यक्ष का छलका दर्द, कई विधायकों के भरोसे ज्ञान सिंह ने ठोंकी ताल – सुरेन्द्र त्रिपाठी

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उमरिया 27 मार्च – शहडोल संसदीय क्षेत्र 12 अ. ज. जा. के सांसद ज्ञान सिंह ने टिकिट न मिलने से नाराज होकर खोला मोर्चा, कह कि मेरी ऎसी क्या गलती है की मेरे को पार्टी टिकट नहीं दे रही है मैं 10 बार चुनाव जीता हूँ और जहां से पार्टी कही है वहां से चुनाव लड़ कर जीता हूँ और कल तक जिसका विरोध किया और हराया हूँ उसका कैसे मदद करूं | यदि पार्टी मेरे को टिकट नहीं दी तो मैं निर्दलीय लडूंगा और जीतूंगा, वहीँ उनके पक्ष में संगठन के ढेरों पदाधिकारी और कार्यकर्ता स्तीफा देने को तैयार हो गए |

अनुसूचित जन जाती के लिए आरक्षित शहडोल संसदीय क्षेत्र 12 के कद्दावर आदिवासी नेता ज्ञान सिंह नौरोजाबाद 81 से सन 1977 में जनता पार्टी से चुनाव लडे और अपने नजदीकी प्रत्याशी कांग्रेस के जगन्नाथ सिंह से 9341 जीत दर्ज करवाए वहीँ जब भाजपा का गठन हुआ और 1980 में फिर नौरोजाबाद 81 से ज्ञान सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव लडे और अपने नजदीकी प्रतिद्वंदी कांग्रेस के मोती सिंह से 1293 मतों से जीते, 1985 में ज्ञान सिंह कांग्रेस के धनशाह प्रधान से 296 मतों से हार गए 1990 में ज्ञान सिंह फिर से भाजपा के टिकट से चुनाव लडे और अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के शिव लारन  सिंह से 13698 मतों से जीत दर्ज कराये, 1993 में ज्ञान सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के अर्जुन सिंह से 4762 मतों से जीते उसके बाद 1996 में ज्ञान सिंह नौरोजाबाद 81 से पार्टी के कहने पर स्तीफा देकर लोक सभा का चुनाव  भाजपा के टिकट पर शहडोल संसदीय क्षेत्र 12 से लडे और अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के दलबीर सिंह को 53395 मतों से हराए, 1998 में पार्टी ने फिर से ज्ञान सिंह पर दांव लगाया और शहडोल संसदीय सीट से चुनाव लड़ाया और फिर से ज्ञान सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के दलबीर सिंह को 39734 मतों से पटकनी दिया | ज्ञान सिंह पर पार्टी हमेशा दांव लगाती गई और ये हर दांव पर खरे उतरते रहे 2003 के विधान सभा चुनाव में भाजपा के पास विधान सभा क्षेत्र उमरिया 80 से कोई ऐसा प्रत्याशी नहीं रहा जो कांग्रेस के अजय सिंह को शिकस्त दे सके एक बार फिर से पार्टी ने ज्ञान सिंह को उमरिया 80 विधानसभा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ाया और ज्ञान सिंह अपने  निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के अजय सिंह को 13796 मतों से शिकस्त देकर अपनी जीत का झंडा गाड़े फिर 2008 के विधान सभा चुनाव में परिसीमन होने के बाद ज्ञान सिंह को पार्टी बांधवगढ़ 89 से  भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ाई और ये अपनी निकटतम प्रतिद्वंदी सावित्री सिंह को 15303 मतों से हराए अब 2013 के चुनाव में पार्टी ने बांधवगढ़ विधान सभा से ज्ञान सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया और फिर से ज्ञान सिंह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के प्यारे लाल बैगा को 18645 मतों से हराए, इसी बीच शहडोल संसदीय क्षेत्र के सांसद दलपत सिंह परस्ते की अचानक मौत हो जाने से 2016 में उप चुनाव हुआ और फिर से पार्टी के पास कोई चेहरा नही था जिसके चलते भाजपा के नेता भरसक प्रयत्न किये की दलबीर सिंह की पुत्री हिमाद्री सिंह को भाजपा से चुनाव लड़ाया जाय लेकिन हिमाद्री सिंह शिवराज सिंह के प्रस्ताव को ठुकरा दी और कांग्रेस से चुनाव लड़ गई हिमाद्री के सामने कोई प्रत्याशी नजर न आने की स्थिति में भाजपा ने ज्ञान सिंह से स्तीफा दिलवा कर शहडोल संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा दिया लेकिन ज्ञान सिंह फिर एक बार खरे उतरे और हिमाद्री दलबीर सिंह को 60383 मतों से हरा कर अपने नाम का झंडा गाड़ दिए | इतनी जीत दर्ज करने के बाद भाजपा की  मुसीबत की घड़ी में जब कोई प्रत्याशी नजर नहीं आता था तब एक ही नाम ज्ञान सिंह का सामने आता था और सीट पर कब्जा दर्ज कराते रहे लेकिन वहीँ हिमादी सिंह जिसके पिता को दो बार और उसको खुद को एक बार ज्ञान सिंह हराए, दो दिन पहले भाजपा की सदस्यता ली और टिकट भी पार्टी ने दे दिया | सीनियर और कद्दावर आदिवासी नेता को भाजपा ने दूध से मक्खी जैसे निकाल कर एक ही झटके में फेंक दिया | अपने इसी अपमान से क्षुब्ध होकर ज्ञान सिंह निर्दलीय लड़ने का एलान कर दिए और हिमाद्री को टिकट मिलने का सुन कर क्षेत्र के आदिवासी और सामान्य सभी वर्ग के नेता और भाजपा के कार्यकर्ता एजाजुद्दीन, संजय सोनी, राम मिलन यादव, संग्राम सिंह, राजेंद्र विश्वकर्मा, योगेश द्विवेदी, योगी नरेन्द्र दास, एवं बहुत से पार्टी के लोग यहाँ तक की दूर – दूर से आये छोटे से लेकर बड़े कार्यकर्ता तक ज्ञान सिंह के घर में डेरा डाल दिए और खुले आम एलान करने लगे की अगर पार्टी ज्ञान सिंह को टिकट नहीं देती है तो हम सब पार्टी छोड़ कर ज्ञान सिंह के साथ हैं और क्षेत्र की जनता भी उनके साथ खडी है |

वहीँ ज्ञान सिंह दुखी मन से बताये की अभी 2 दिन पहले पार्टी में आई और टिकट मिल गई 19 तारिख को भाजपा के संगठन मंत्री सुहास भगत आश्वासन दिए कि आप तैयारी करो और 21 तारीख को हिमाद्री को टिकट दे दिए जबकि हमको जब भी पार्टी अजमाई हम खरे उतरे लेकिन हर बार मुसीबत की घड़ी में जब हमारी सरकार नहीं रही तब भी हम जीते जनता ने सहयोग दिया और आज हमको अलग कर दिए | जब दलपत सिंह परस्ते जी का निधन हो गया तब फिर कहे की चुनाव लड़ो तब हमने कहा की भाई हिमाद्री को प्लेन से ले जाकर दिल्ली भोपाल घुमाते रहे उसी को लड़ा लो और वो नहीं मानी तब हमको लड़ाए नोटबंदी  का असर था उप चुनाव था फिर भी जनता ने सहयोग दिया और  जीते 18 माह में जितना मेरे से संभव हुआ क्षेत्र के विकास के लिए किया और अपनी उपलब्धियां गिनाते रहे | फिर दुखी मन से कहे की मैं अचंभित हूँ मेरे से कहाँ पर गलती हो गई जो पार्टी ने मेरे को मक्खी जैसे निकाल फेंकने का काम किया है, जिस उम्मीदवार को हम हरवाये हैं उसके बारे में कई प्रकार की टिप्पणी किये आज उसको लेकर कैसे प्रचार कर पाएंगे मेरे क्षेत्र के लोग दुखी हैं हमारे दोनों पूर्व विधायक जयराम मार्को, सुन्दर सिंह परस्ते, सुदामा सिंह, राम लाल रौतेल अभी भोपाल जा रहे हैं कल सुबह आयेंगे बैठेंगे सारे के सारे दुखी हैं सभी लोग कहे की जैसा निर्णय होगा देखा जाएगा जीती हुई सीट को कैसे दे दिए समझ में नहीं आता है पूंछने लायक था संजय पाठक जी से, जीतेन्द्र लटोरिया जी से, मिथलेश पयाशी जी से, राकेश शर्मा जी से, आशुतोष अग्रवाल जी से, मुझे संतोष तो दे दें मैं टिकट  का लालची नहीं हूँ 10 बार जीत चुका हूँ, मेरे को बता तो दे क्या गलती है |वहीं कहे कि अजय प्रताप सिंह जी से पूंछे की कभी पंच का भी चुनाव जीते हैं जो आज राज्य सभा सांसद बने बैठे हैं।

वहीँ जब ज्ञान सिंह से पूंछा गया की आप हिमाद्री सिंह को किस नजरिये से देखते हैं और आप से मिलने आई थी तब कहे की हिमाद्री सिंह अभी तो पार्टी की उम्मीदवार घोषित हुई है और मेरे नजर में वही पंजा – पंजा दिखता है अभी भी कमल तो उसके ह्रदय में दिखता नहीं है, कल  मिलने आई थी तो मैं मिलना ही नहीं चाहता हूँ कोई जरूरत नहीं है वहीँ जब पूंछा गया की यदि शीर्ष नेतृत्व और शिवराज सिंह का दबाव पड़े तो क्या करेंगे तब कही की मैं नहीं बैठूंगा किसी हालत में नहीं बैठूँगा  अपमान का घूँट पीकर नहीं बैठूंगा, वहीँ अपने पुत्र शिव नारायण सिंह की तरफ ईशारा करते हुए कहे आज मेरे साथ हुआ है कल विधायक के साथ होगा, मैं किसी की नहीं मानूंगा बस एक ही बात मानूंगा टिकट दो कहानी ख़त्म करो और दुबारा मत देना, वहीँ जब पूंछा गया की आप निर्दलीय लड़ेंगे तो कहे कि बिलकुल लडूंगा अभी चर्चा में है मेरे साथ चारो पूर्व विधायक हैं दो वर्त्तमान विधायक हैं और जनता मेरे साथ है, हमने किसी के साथ अत्याचार नहीं किया है, मैं क्या बांटता न कमाया, न कमीशन खाया, मेरी गरीब की पूंजी जनता ही है वो लोग पैसे वाले हैं इसलिए टिकट दे दिया गया जिसके पास दिल्ली में, शिमला में, गुडगाँव में चार मंजिला बिल्डिंग हो, कई पेट्रोल पम्प हों उसके पास कौन सी कमी है करोङों देकर कुछ भी कर सकते हैं।

वहीँ भाजपा जिला अध्यक्ष मनीष सिंह से जब टिकट न मिलने की चर्चा की गई तो तो कहीं न कहीं उनके दिल में जो दर्द था वह भी छलक आया और कहे की जब हमारे बूथ के लिए कोई नहीं मिलता था तब ज्ञान सिंह जी विधायक होते थे चाहे मुख्य मंत्री कोई हो सरकार किसी की रही हो लेकिन 1977 से लगातार ज्ञान सिंह जी विधायक थे 7 बार विधायक रहे 3 बार सांसद रहे मंत्री भी रहे वरिष्ट आदिवासी नेता हैं इस निर्णय से तो हमारे पास बूथ के कार्यकर्ताओं का फोन आता है, कार्यकर्ता भी कह रहे हैं कि कार्यकर्ता आधारित पार्टी है, एक कांग्रेस से आई हुई कार्यकर्ता को टिकट दे देना किसी के समझ में नहीं आता है लेकिन अब पार्टी का निर्णय है वहीँ जब पूंछा गया की भाजपा की यूज एंड थ्रो की नीति है चाहे आडवानी जी हो या मुरली मनोहर जोशी हों या सभी को अलग कर दिया गया उस पर कहे की नहीं ऐसा नहीं है |

वहीँ हिमाद्री सिंह कही कि आज हम यहाँ पार्टी के लोगों से मिलने आये थे और हमारे वरिष्ट क्या परिवार के ही सदस्य दाऊ जी से मिलने आई हूँ वहीँ ज्ञान सिंह जी जब मिलने से मना कर दिए तो अपनी झेंप मिटाने के लिए होली के त्यौहार का बहाना बताती रही की गाँवों में बहुत दिन तक होली मनाते हैं और अभी ऐसा नहीं है आते – जाते रहेंगे अभी तो शुरुवात है ये तो मेरा घर है वहीँ जब पूंछा गया की दाऊ साहब कहे की मैं निर्दलीय चुनाव लडूंगा तो कही कि ऐसा कुछ नहीं है और मेरे को नहीं मालूम की वो कुछ ऐसा कहे है और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मुझ पर विश्वास जताया है है इसलिए मैं यहाँ पर प्रत्याशी बनी हूँ और दाऊ जी की जहाँ तक बात है वो मेंरे पिता तुल्य हैं वहीँ टिकट के बात पर कही की ये तो पार्टी और संगठन तय करता है कि प्रत्याशी कौन होगा वहीँ अपनी जीत के प्रति भी आश्वस्त दिखी, भले ही क्षेत्र की जनता नकार दे |

गौरतलब है कि जिस तरह गाँव – गाँव में लोग एकत्र होकर ज्ञान सिंह के प्रति विश्वास और भाजपा के प्रति नाराजगी दर्शा रहे हैं उससे तो ऐसा लगता है कि उमरिया जिले की दोनों विधान सभा क्षेत्र से भाजपा का सूपड़ा साफ़ हो जाएगा |

 

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