दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के संबंध सदियों पुराने हैं। अतीत में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच स्थापित भौगोलिक एवं ऐतिहासिक जुड़ाव शांति, प्रगति और समृद्धि के अपने साझा लक्ष्यों के साथ वर्तमान में भी जारी है।
दोनों देशों के बीच में यह जुड़ाव ऐसे ही स्थापित नही हो गया बल्कि यह दोनों देशों के साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्ली भेदभाव और रंगभेद के खिलाफ जो साझा संघर्ष रहा है उससे विकसित हुआ है। वर्तमान समय में भले ही वह दौर पीछे छूट गया हो, लेकिन उस साझा संघर्ष से उपजी एकता ही है जो, आज भी दोनों देशो के मध्य में द्विपक्षीय संबंधो पोषित कर रही है| भारत के दक्षिण अफ्रीका से संबंधो को स्थापित करने में महात्मा गाँधी की बहुत बड़ी भूमीका रही है क्यूंकि गांधीजी की कर्मभूमि दक्षिणी अफ्रिका थी| गाँधी जी के कार्यों ने ही भारत-दक्षिण अफ्रीका के द्विपक्षीय संबंधो को उपनिवेशिक काल में एक नया आयाम प्रदान किया था| उसका ही परिणाम था कि भारत के स्वतंत्रता के बाद, दोनों देशो के संबंधों में बड़ा बदलाव आया|
इसका ही परिणाम है कि इस बार देश के गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति साइरिल रामाफोसा भारत के मुख्य अतिथि रहे है| उनकी मौजूदगी भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों के लिए बहुत ही खास है, क्योंकि इस वर्ष महात्मा गांधी की 150वीं जयंती है। दोनों देशों ने पिछले वर्ष ही नेल्सन मंडेला की जन्म शताब्दी और आपसी राजनयिक संबंधों की रजत (25 वर्ष) जयंती को बड़े ही धूमधाम से मनाया है| इस विशेष मौके पर रामाफोसा के भारत आने पर पीएम मोदी ने कहा कि हमारे द्विपक्षीय संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। वर्तमान समय में 10 बिलियन डॉलर का व्यापार दोनों देशों के बीच में हो रहा है।
वहीं दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका में निवेश बढ़ाने को लेकर वहां के राष्ट्रपति के प्रयासों पर भारत की विभिन्न कंम्पनियां बढ़ चढ़कर के हिस्सा ले रही है। इसका ही परिणाम है कि अन्य क्षेत्रों के अतिरिक्त भारत कौशल विकास के प्रयासों में भी सहयोग कर रहा है। भारत पिटोरिया में जल्द ही गांधी मंडेला स्किल इंस्टीट्यूट की स्थापना करने जा रहा है| इस बदलते वैश्विक परिवेश में दोनों देशों के संबंधो को मजबूती प्रदान करने का कार्य उनके ऐतिहासिक जुडाव ने किया जिसका परिणाम है कि द्विपक्षीय सम्बन्ध मधुर हुए है |
स्वतंत्रता के बाद भारत और दक्षिण आफ्रिका सम्बन्ध
वतंत्रता के बाद भारत के प्रधानमंत्री नेहरु की विदेश नीति के मूल सिधान्तों में साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्ली भेदभाव और रंगभेद गुट निरपेक्षता और दक्षिण सयहोग जैसे विषय प्रमुख थे| इसी कारणवश प्रधानमंत्री नेहरु ने भी दक्षिण अफ्रीका को भी प्रमुखता दी और उसका ही परिणाम था की दोनों देशो के बीच के आर्थिक और राजनैतिक सम्बन्ध एक नये रूप में उभर कर आए| नेहरु की प्रमुखता के कारण ही भारत ने 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ में जातीय भेदभाव की नीति का प्रश्न उठाया तथा, दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद के विरुद्ध आंदोलन के कारण भारत वह पहला देश बना जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या के कारण दक्षिण अफ्रीका से अपने राजनैतिक एवं वाणिज्य सांस्कृतिक संबंधों पर प्रतिबंध लगा दिया था| भारत ने संयुक्त राष्ट्र के अलावा गुटनिरपेक्ष आंदोलन एवं 1955 कि अफ्रीका-एशिया कॉन्फ्रेंस तथा अन्य बहुपक्षीय संगठनों के माध्यम से रंगभेद की नीति को समाप्त करने एवं दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध इस नीति के कारण वश आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए निरंतर प्रयास कियम था | भारत सरकार ने अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस(ANC) का नई दिल्ली में कार्यालय खोलने ने सहयोग किया एवं रंगभेद नीति के विरुद्ध में आर्थिक सहयोग के माध्यम से भी अपनी सक्रियता निभाई |
भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव मुख्य रूप से 1990 के दशक के बाद में उभर कर आया , जब नेल्सन मंडेला को जेल से रिहा का 1993 में देश का प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बनाया गया | इसके उपरान्त ही भारत में मई 1993 जोहानेसबर्ग में सांस्कृतिक केंद्र उद्घाटन किया , जिससे कि जो दोनों देशों के बीच के द्विपक्षीय संबंधों में कटुता थी उसको नए सिरे से बदलते राजनीतिक , सामाजिक और आर्थिक वातावरण में मधुर बनाया जा सके | भारत- दक्षिण अफ्रीका के मध्य में औपचारिक रूप से राजनयिक एवं कूटनीतिक संबंध नवंबर 1993 में दक्षिण अफ्रीका के तात्कालीन विदेश मंत्री श्री पीक बोथा के भारत आगमन बाद में हुआ | इसी परिपेक्ष में भारत सरकार द्वारा दक्षिण अफ्रीका में 1994 में अपना उच्चायोग खोला गया और इसको स्थायी कार्यालय के रूप में स्थापित किया गया ।
भारत और दक्षिण अफ्रीका के राजनीतिक संबंध
भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच राजनीतिक संबंध यूरोपिय औपनिवेशिक काल के समय ही विद्यमान थे उसका ही परिणाम था दोनों देशों के बीच में राजनीतिक विचारों का आदान प्रदान होता था | परंतु यह आदान प्रदान ब्रिटिश शासन व्यवस्था के द्वारा अपने स्वयं के हितों को ध्यान में रखकर किया जाता था | जोकी भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों के लिए मुख्य रूप से लाभदायक नहीं था | महात्मा गांधी ने दोनों देशों के बीच में राजनीतिक संबंधों को स्थापित करने में मुख्य भूमिका निभाई , स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने मुख्य रूप से अफ्रीका के विभिन्न देशों समेत दक्षिण अफ्रीका पर भी ध्यान केंद्रित किया | उसका ही परिणाम था कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन एवं दक्षिण-दक्षिण सहयोग के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका से अपने संबंधों को स्थापित किया | भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य राजनयिक संबंधों का विकास मुख्य रूप से 1994 बाद में जो रंगभेद के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष चल रहा था उसकी समाप्ति के बाद हुआ | इसी पृष्ठभूमि में भारत ने दक्षिण अफ्रीका के साथ द्विपक्षीय संबंधों को वैश्वीकरण के युग में नया आयाम प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयास किया | इसका ही परिणाम था कि आर्थिक , सांस्कृतिक, सामाजिक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एवं शिक्षा जैसे विविध विषयों पर दोनो देशो ने द्विपक्षीय समझौतों हस्ताक्षर किये| भारत सरकार ने तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम माध्यम से यहां के मानव संसाधन के विकास में बढ़ावा देना कार्य किया |
भारत दक्षिण अफ्रीका आर्थिक संबंध
मार्कोपोलो जैसे विभिन्न इतिहासकारों एवं विद्वानों का मानना है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य में आर्थिक एवं व्यापारिक संबंध प्राचीन काल से विद्यमान थे | बड़े पैमाने पर उस समय के केप ऑफ गुड होप (Cape of good Hope) जो आज दक्षिण अफ्रीका है से भारत का मसालों , कपड़े , सोना ,चांदी आदि जैसे बहुमूल्य वस्तुओं का आदान -प्रदान होता था| जिसके कारणवश भारत और दक्षिण अफ्रीका के आर्थिक संबंधों से राजनीतिक संबंधों को भी बढ़ावा मिला | 16 वीं शताब्दी में यूरोपियन के आगमन के बाद दोनों देशों के बीच में आर्थिक और राजनीतिक संबंधों बदलाव का दौर प्रारंभ हुआ | जिसमें कि बड़े पैमाने पर भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका के नटाल क्षेत्र में गन्ने की खेती के लिए पूर्वी एवं मध्य भारत से लाया गया | इन अप्रवासी भारतीयों के आगमन से दोनों देशों के संबंधों में बड़ा बदलाव आया| परंतु स्वतंत्रता के बाद भारत द्वारा रंगभेद की नीति के विरोध करने के कारण दोनों देशों के आर्थिक संबंध प्रभावित हुए और इससे दोनों देशों के बीच का व्यापार भी थोड़ा कम हुआ | 1993 में जब नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका में पहली अश्वेत सरकार बनी तो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार एवं वाणिज्यक समझाते में बदलाव आया | उसका ही परिणाम था कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बड़ी ही तीव्र गति से वैश्विकरण के दौर में बढ़ने लगा | वर्ष 1993 में दोनों देशों के मध्य जब राजनयिक संबंध स्थापित हुए तो वाणिज्यि भी सुदृढ़ होने लगा | दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा 2010 में भारत की यात्रा पर आए जिसमें कि दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार को 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर करने की सहमति हुई | तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री जनवरी 2011 में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की तो इस लक्ष्य को 2014 का 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर करने का लक्ष्य रखा | 2012 -13 एवं 2013- 14 में दक्षिण अफ्रीका द्वारा भारत के व्यापार में मुख्य रूप से सोने के आयात पर प्रतिबंध के कारण से गिरावट आ गई | इस कारणवश दोनों देश के मध्य 2014 में 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को रखा गया है | भारत की तरफ से दक्षिण अफ्रीका में जिन वस्तुओं का निर्यात किया जाता है उनमे मुख्य रूप से वाहन तकनिकी , परिवहन के उपकरण , औषधियां एवं अन्य स्वास्थ्य एवं अन्य स्वास्थ्य से संबंधित तकनीकी ज्ञान और नवीन खोजो , एवं संरचनात्मक विकास के लिए इंजीनियरिंग तकनीकी एवं ज्ञान आदान प्रदान किया जा रहा है | भारत सरकार बड़े पैमाने पर यहां पर रसायन, खाद्यान्न एवं शिक्षा संबंधी जो जरूरतें हैं उस पर भी निवेश करने का कार्य कर रही | दक्षिन अफ्रीका के द्वारा भी भारत में बड़े पैमाने पर विभिन्न वस्तुओं का आयात किया जा रहा है जिसमें कि सोना , स्टील , कॉपर तथा अन्य खनिज शामिल है | भारत के द्वारा प्रमुख कंपनियों के मध्याम से बड़े पैमाने पर संरचनात्मक विकास एवं मानवीय विकास पर निवेश किया जा रहा है जिसमें कि टाटा ऑटोमोबाइल , युवी ग्रुप, महिंद्रा तथा रैनबैक्सी एवं सिप्ला जैसी प्रमुख कंपनियां शामिल है | भारत सरकार ने दक्षिण अफ्रीका के बैंकिंग सेक्टर को भी मजबूत करने के लिए बहुत व्यापक कदम उठाए हैं उसका ही परिणाम है दक्षिण अफ्रीका के प्रमुख बैंक फर्स्ट नेशनल बैंक की कई शाखाओ को अप्रैल 2012 में भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में खोला गया है |
भारत –दक्षिण अफ्रीका के सांस्कृतिक
भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य सांस्कृतिक संबंधों को स्थापित करने में भारत के प्रवासियों का बहुत बड़ा योगदान है , क्योंकि विभिन्न इतिहासकारों एवं विद्वानों का मानना है कि जब प्राचीन काल में भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य व्यापारिक संबंध थे उसने दोनों देशों के मध्य में संस्कृति और सभ्यता का बड़े पैमाने पर आदान- प्रदान हुआ | आज उसका ही परिणाम है कि ओपनिवेशिक काल एवं वर्तमान में दोनों देशों के मध्य जो संबंध स्थापित हुए है उसमें इस संस्कृति और सभ्यता का बहुत बड़ा योगदान रहा है | भारत ने सम्पूर्ण विश्व से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए सदेव वसुधैव कुटुंबकम नीति अपनयी है , इस नीति को और आगे बढ़ने का कार्य प्रधानमंत्री नेहरुन द्वारा जो नम्य शक्ति नीति (Soft power policy ) रही है उसने किया है | इसी कारणवश दोनों देशों के मध्य संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न- विभिन्न संस्थाओं के द्वारा सांस्कृतिक विनिमय का आयोजन किया जाता है | भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) की मदद से संपूर्ण दक्षिण अफ्रीका में सांस्कृतिक एवं सभ्यता का आदान प्रदान संबंधी कार्यक्रम किए जाते हैं जिसमें कि दक्षिण अफ्रीका के नागरिकों को बड़े पैमाने पर शामिल किया जाता है ताकि वह लोग भी भारत की सभ्यता और संस्कृति को समझ सके | इसके अलावा दोनों देशों के मध्य सार्वजनिक एवं निजी साझेदारी के माध्यम से ‘ हिस्ट्री शेयर’ जैसे उत्सव भी आयोजित किया जाते हैं ताकि दोनों देश के प्रमुख जानकार विद्वान एवं बुद्धिजीवी वर्ग अपने विचारों एवं कला के माध्यम से एक दूसरे को अपने इतिहास एवं प्राचीन सभ्यता से परिचित करा सके | भारत सरकार के द्वारा यहां पर भारतीय त्योहारों एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यकर्मो जैसे :- गणतंत्र दिवस महोत्सव, स्वतंत्रता दिवस महोत्सव, हिंदी महोत्सव, दिवाली , होली आदि का आयोजन किया जाता है जिससे दक्षिण अफ्रीका के मूल निवासी भारत कि सभ्यता और संस्कृति को समझ सकें|
भारतीय समुदाय
भारतीय मूल के लोगो का दक्षिण अफ्रीका में आगमान मुख्यता दो माध्यमो से हुआ इसमें अधिकतर लोग 1807 के बाद में खेतिहर मजदूर के रूप ब्रिटिश ओपनिवेशिक शासन के द्वारा नटाल क्षेत्र में गन्ने की खेती करने के लिए लाये गये थे | जो की मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश , बिहार , आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु से थे | दूसरी बार भारतीय समुदाय के लोग 1880 के दशक में ‘यात्री भारती’ के रूप में दक्षिण अफ्रीका मुख्य रूप से गुजरात से यहाँ आये | आज इन लोगों की बहुत बड़ी तादात है जो कि वर्तमान समय में लगभग तीसरी या चौथी पीढ़ी के रूप में दक्षिण अफ्रीका में रह रहे हैं आज भारतीय मूल के लगभग 1.5 मिलियन के आसपास लोग रहते हैं , जिनका कि दक्षिण अफ्रीका की कुल आबादी में 3% का योगदान रहा है |इसमें लगभग 80% नटाल में 15% ट्रांसवाल बाकी केपटाउन समेत दक्षिण अफ्रीका विभिन्न क्षेत्रों में रहते हैं इन भारतीयों का दक्षिण अफ्रीका में सरकार, व्यवसाय, मीडिया, शिक्षा, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील विभिन्न क्षेत्रों में अच्छा खासा प्रतिनिधित्व है | अभी हाल ही में वर्ष 2010 में भारतीयों द्वारा दक्षिण अफ्रीका पहुंचने के कारण 150 वर्षगांठ मनाई गई है | भारत सरकार के द्वारा सन 2000 में बाजपेई सरकार के द्वारा प्रवासी भारतीय सम्मेलन प्रारंभ किया गया था| उसका रिश्ता भी दक्षिण अफ्रीका से जुड़ा है क्योंकि गांधी जो अपने किसी केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए थे , 9 जनवरी 1915 को वापिस भारत आये और उसके बाद ही उन्होने स्वतंत्रता आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई ,इसी कारणवश यह दिन भारत सरकार के द्वारा प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है |
निष्कर्ष
भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य में भले ही द्विपक्षीय सम्बन्ध प्रगाड़ हो परन्तु भारत और दक्षिण अफ्रीका के समक्ष खतरे भी लगभग समान ही हैं। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, निर्धनता, बीमारी, अशिक्षा, भुखमरी, जलवायु परिवर्तन की चुनौती तथा अपने नागरिकों के समग्र विकास को बढ़ावा देने संबंधी चुनौतियों | भारत और दक्षिण अफ्रीका को चाहिए कि वो आधुनिक वैश्वीकृत युग में आर्थिक कूटनीति वैश्विक धरातल पर एक महत्त्वपूर्ण तत्व के रूप में उभरे एवं दोनों देश वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण विदेश नीति में राजनीतिक तत्त्वों के स्थान पर आर्थिक तत्त्वों का महत्त्व दे। वर्ष 2008 में नई दिल्ली में आयोजित पहले भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के साथ आपसी संबंधों को गति देने की कोशिश शुरू की गई थी , उसमे समान हितों का विस्तार करने के साथ में नवीनता प्रदान कि जरूरत है। इसके आलवा भारत और दक्षिण अफ्रीका को इब्सा , ब्रिक्स और अफ्रीकन यूनियन के माध्यम से अपने द्विपक्षीय सम्बनधो को सोहार्दपूर्ण बनाना होगा ताकि जो चीन का इस क्षेत्र में जो आर्थिक , राजनैतिक रूप से प्रभाव बढ़ रहा है उसको नियंत्रित किया जा सके जो की भारत और दक्षिण अफ्रीक समेत सपूर्ण अफ्रीका महाद्वीप के लिए कारगार सिद्ध होगा |